25 दिसम्बर और विवेकानन्द शिला  

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25 दिसम्बर 23-पूरे भारत वर्ष का भ्रमण करते हुए स्वामी विवेकानन्द 25 दिसम्बर 1892 को भारत के दक्षिणी किनारे कन्या कुमारी पहुँचे। पूजा आदि कार्यो से निवृत होकर सायं समय एक मन्दिर के पास खड़े होकर सागर का मनोरम दृश्य देखने लगे। कभी मन्दिर में स्थापित भगवान की प्रतिमा को देखते और कभी सामने फैले विशाल हिन्द महासागर को, सहसा उनकी नजर समुद्र के 200 गज अन्दर एक शिला पर पड़ी। उसे देखकर उन्होंने विचार किया। कि क्यो ना समुद्र के अन्दर स्थित इस शिला पर जाकर ध्यान योग किया जाये। उन्होनें शिला तक जाने के लिए पास में खड़ी किश्ती का सहारा लेने के लिए किश्ती वाले को अपने पास बुलाया लेकिन उसने स्वामी जी को शिला तक ले जाने के लिए एक आने किराये की मांग की। वह तो ठहरे सन्यासी उनके पास पैसे कहाँ से आये। अतः किश्ती वाले ने उनको शिला तक ले जाने से मना कर दिया। फिर क्या था विवेकानन्द अपने कपड़ो और पोटली के साथ कूद पड़े समुद्र में, और तैर कर पहुँच गये उस शिला तक, वहाँ पहुँच कर वह गीले कपड़ो में ही शिला पर ध्यान में लीन हो गये। तीन दिन और तीन रातें बगैर कुछ खाये पिये वह ध्यान योग में लीन रहे। इस समय अवधि के बाद जब वह ध्यान योग से जागे तो उनके अन्दर अथाह ज्ञान के साथ भारतीयता के प्रतीक ऐसे देश भक्त सन्यासी का उदय हुआ। जिसने भारतीय सनातनी संस्कृति और वेदान्त की पूरे विश्व में नई पहचान दी। आज वह शिला विवेकानन्द शिला के नाम से जानी जाती है
अविनाश अग्निहोत्री

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